कार्ल मार्क्स : 1818 -1883
कार्ल मार्क्स का जीवन परिचय और उनकी प्रमुख कृतियां (Karl Marx's Biography and his major works)
'अंतर्राष्ट्रीय सर्वहारा के इस महान शिक्षक और नेता 'कार्ल मार्क्स का जन्म (प्रशिया के राइन प्रान्त के ) ट्रियर नगर के एक यहूदी परिवार में 5 मई, 1818 को हुआ था | इनका पूरा नाम कार्ल हेनरिख मार्क्स था | यह जर्मन दार्शनिक, अर्थशास्त्री, इतिहासकार, राजनीतिकार, सिद्धांतकार, समाजवादी पत्रकार और वैज्ञानिक समाजवाद के प्रणेता थे | मूलरूप से इनके माता पिता यहूदी थे |
पूरा नाम - कार्ल हेनरिच मार्क्स
जन्म स्थान- ट्रियर, जर्मनी
मृत्यु -14 मार्च 1883 (उम्र 64 वर्ष), लंदन इंग्लैंड
राष्ट्रीयता - प्रुसियन
धर्म - ईसाई
पत्नी - जेनी वॉन वेस्टफेलन
बच्चे - सात
पिता - हेनरी मार्क्स
माता -हेनरीएट प्रेस्बुर्ग
कार्ल मार्क्स की शिक्षा
मार्क्स एक औसत छात्र थे,उन्होंने 12 वर्ष तक की शिक्षा अपने घर में ही ली थी,और इसके बाद 5 वर्ष 1830 से लेकर 1835 तक ट्रियर के जेस्युट हाई स्कूल में पढ़ाई की, जो कि उस समय फ्राईएड्रीच विल्हेल्म जिम्नेजियम (Friedrich Wilhelm Gymnasium)के नाम से जानी जाती थी. स्कूल के प्रिंसिपल कार्ल के पिताजी का दोस्त था जो कि एक लिबरल और कन्तियन था और रैनलैंड के लोग उसकी इज्जत करते थे लेकिन ऑथोरिटीज उस पर संदेह करती रहती थी, और गहन निगरानी में रहने के बाद आखिर में 1832 में स्कूल पर छापा पड गया. इस दौरान मार्क्स के लिखे गये लेखों में ईसाई समुदाय के लिए समर्पण और मानवता के लिए त्याग की भावना दिखाई देती हैं मार्क्स के पिता वकील थे और इसीलिए आगे चलकर मार्क्स ने भी कानून का अध्ययन प्रारंभ कर दिया
उन्होंने इतिहास,गणित,साहित्य और ग्रीक एवं लैटिन ऐसी भाषा का अध्ययन किया था कार्ल फ्रेंच और लेटिन में सिद्ध हो गये थे और वो इन दोनों भाषाओँ को पढ़ भी सकते थे और लिख भी सकते थे, बाद के वर्षों में उन्होंने स्पेनिश,इटेलियन,डच ,स्केनडीनेवियन (Scandinavian),रशियन और इंग्लिश जैसी भाषाएँ भी सीखी थी, वो शेक्सपियर को पसंद करते थे. उनका दी न्यू-यॉर्क डेली ट्राईब्यून शो में छपे आर्टिकल को देखकर समझा जा सकता हैं कि उन्हें इंग्लिश का कितने अच्छे से ज्ञान हो गया था, हालांकि बोलने में उनका जर्मन एसेंट ही झलकता था.
कार्ल मार्क्स का करियर
अक्टूबर 1835 में मार्क्स ने यूनिवर्सिटी ऑफ बोन में पढ़ना शुरु यहां की छाया के विद्रोही माहौल में मार्क्स ने अपने छात्र जीवन खुलकर एंजॉय किया 1 साल के दूसरे सेमिस्टर में ही उन्होंने शराब पीने शांति भंग करने और अनुशासनहीनता के आरोप में जेल हो गई फ़्रैंकफ़र्ट के फेडरल डाइट के सेशन को बाधित करने के आरोप में कई छात्रों को निष्कासित किया गया साल के अंत में उनके पिता ने उनसे बर्लिन की यूनिवर्सिटी में पढ़ने के लिए जोर दिया इसलिए 1 साल बाद मार्क्स ने लॉ और फिलासफी की पढ़ाई करने के लिए बर्लिन यूनिवर्सिटी में दाखिला लिया और बोर्न विश्वविद्यालय को छोड़ दिया।
मार्क्स के पिता वकील थे और इसीलिए आगे चलकर मार्क्स ने भी कानून का अध्ययन प्रारंभ कर दिया कानून पढ़ते-पढ़ते बर्लिन विश्वविद्यालय में मार्क्स हीगल के दर्शन की ओर आकृष्ट हुए हीगल ने संपूर्ण इतिहास का निर्वाचन एक ऐसी प्रक्रिया द्वारा किया जिससे मनुष्य में मानवता का विकास एक ऐसे समाज की ओर हुआ जो विवेकी और मुक्त था प्रारंभिक वर्षों में मार्क्स अपने आप को एक युवा हीगल वादी कहते थे वास्तव में युवाओं का एक ऐसा समूह बर्लिन में बन गया जो हीगल का अनुयाई तो था लेकिन हीगल की निरंतर आलोचना भी करता था बाद के वर्षों में मार्क्स ने हीगल केेेेे सिद्धांत को अस्वीकार किया और कहा कि इतिहास का महत्वपूर्ण निर्णायक मस्तिष्क तो नहीं है उन्होंने दृढ़ता पूर्वक कहा कि समाज की संरचना भौतिक कारक करते हैं इस अवस्था मैंं आकर मार्क्स धर्म विरोधी हो गए विश्वविद्यालय छोड़ देनेे के बाद मार्क्स एक लेखक बन गए।
मार्क्स ने की हीगल की कृतियों से परिचय कर लिया था और वामपंथी हीगल वादियों से संपर्क बढ़ाना शुरू कर दिया था मार्क्स ने जेना विश्वविद्यालय मैं अपना एक व्याख्यात्मक निबंध प्रस्तुत किया था उसका शीर्षक था "देमोक्रातस और एपिकुरस की प्रकृति दर्शनों में अंतर" उनके उस व्याख्यात्मक निबंध से पता चलता है कि उस समय उनका दृष्टिकोण यद्यपि भाव वादी था फिर भी वही गर्ल के असंगति पूर्व दर्शन से अनीश वरवादी और क्रांतिकारी निष्कर्ष निकालने लगे थे हीगल के एपि कुरस के भौतिकवाद और आन ईश्वर वाद को लेकर उनकी निंदा की थी इसके विपरीत मार्क्स ने धर्म और अंधविश्वास के विरुद्ध उस प्राचीन यूनानी दार्शनिक के साहस पूर्ण संघर्ष की सराहना की मार्क्स को उस व्याख्यात्मक निबंध पर ही अप्रैल 1841 में दर्शनशास्त्र के डॉक्टरेट की उपाधि मिली।
कार्ल मार्क्स की इच्छा बोन विश्वविद्यालय में प्रोफेसर बनने की थी परंतु उसकी सुविधा न मिलने पर इन्होंने अप्रैल 1842 में राईनिश जाईटुँग (राइन की गजट) नामक पत्रिका में काम करना शुरू किया और उसके संपादक भी बन गए इस पत्रिका केे कॉलमो के द्वारा मार्क्स ने एशिया और समूचे जर्मनी में उस समय पाए जाने वाले राजनीतिक और धार्मिक उत्पीड़न के विरुद्ध तथा आम जनता के हितों के पक्ष में आवाज उठाई।
पेरिस में अगस्त 1844 के अंत में मार्क्स और एंगेल्स का ऐतिहासिक मिलन हुआ जिसमें उन्होंने पाया कि दोनों के विचार पूर्णता एक-दूसरे से मेल खाते हैं। मार्क्स और एंगेल्स की संयुक्त रचना होली फैमिली प्रकाशित हुई जिसमें सर्वहारा वर्ग के विश्वव्यापी ऐतिहासिक उद्देश्य से संबंधित विचारों की लगभग एक समूची प्रणाली खड़ी कर दी गई थी ।
मार्क्स और एंगेल्स ने कम्युनिस्ट लीग की दूसरी कांग्रेस की तैयारी को बड़ा महत्व दिया यह कांग्रेस सन 1847 में नवंबर के अंत में और दिसंबर के आरंभ में लंदन में हुई थी इसमें इन दोनों मित्रों के द्वारा प्रतिपादित सिद्धांतों को सर्वसम्मति से स्वीकार कर लिया गया और उन्हें एक कम्युनिस्ट घोषणापत्र तैयार करने का काम सौंपा गया कम्युनिस्ट घोषणापत्र मार्क्स की अमर रचना है. जो कि लंदन से फरवरी 1848 में प्रकाशित हुई यह वैज्ञानिक कम्युनिज्म का कार्यक्रम संबंधी दस्तावेज है. इसमें ही सबसे पहली बार सर्वहारा के क्रांतिकारी सिद्धांतों की यह संक्षिप्त और सरल व्याख्या की गई थी।
फ्रांस में वर्ग संघर्ष 1848 से 1850 तक नामक अपनी रचना में ही मार्क्स ने सर्वहारा अधि नायक दुआ के प्रसिद्ध सूत्र का प्रयोग किया है।
सन 1897 मैं मार्क्स का विश्व विख्यात ग्रंथ दास कैपिटल का प्रथम खंड प्रकाशित हुआ इस ग्रंथ का दूसरा और तीसरा खंड उनके जीवन काल में प्रकाशित ना हो पाया था और उन्हें एंगेल्स ने क्रमशः सन 1885 और 1894 मैं प्रकाशित किया था कैपिटल मार्क्स की एक अनुपम देन है।
कार्ल मार्क्स का विवाह
कार्ल मार्क्स का विवाह 1843 में जेनी वॉन वेस्टफेलेन के साथ हुआ था वे महिला ट्रियर के कुलीन वर्ग के एक सम्मानीय परिवार से थी शादी के पश्चात इनके 7 बच्चे हुए अपनी आर्थिक स्तिथि ठीक न होने के कारण वे लोग लंदन आ कर बस गए। इनके बच्चो के नाम है :
- जेनी कैरोलिन (1844 -1883 )
- जेनी लौरा (1845 -1911 )
- एडगर (1847 -1855 )
- हेनरी एडवर्ड गय (1849 -1850 )
- जेनी एवेलिन फ्रांसेस (1851-1852 )
- जेनी जूलिया एलेनोर (1855 -1898 )
- इनकी एक संतान मृत पैदा हुई थी जुलाई 1857 में।
कार्ल मार्क्स की प्रमुख रचनाये
- दा पावर्टी ऑफ़ फिलोसॉफी (1847)
- दी कम्युनिस्ट मेनिफेस्टो (1948)
- ए कंट्रीब्यूशन टू दा क्रिटिक ऑफ़ पॉलिटिकल इकोनॉमी (1859)
- इनॉगरल एड्रेस ऑफ़ दा इंटरनेशनल वर्किंग मेन्स एसोसिएशन(1864)
- वैल्यू, प्राइस एंड प्रॉफिट(1865)
- दास कैपिटल, Vol. 1 (1867)
- दा सिविल वॉर इन फ्रांस (1870-71)
कार्ल मार्क्स की मृत्यु
कार्ल मार्क्स की मृत्यु 14 मार्च, 1883 को मार्क्स इस संसार से विदा हो गए 17 मार्च, 1883 को शनिवार के दिन मार्क्स के शव को लंदन के हीगेट नामक कब्रिस्तान में दफनाया गया ऐंगल्स ने इनकी समाधि के बगल में ही एक हृदय विदारक भाषण दिया अपने इस भाषण में उन्होंने वैज्ञानिक कम्युनिज्म के इस संस्थापक, मजदूर -वर्ग के इस महान नेता के भागीरथ प्रयत्नों का , सभी मेहनतकशों और शोषितों के लिए, सर्वहारा- वर्ग के उद्देश्य के लिए उनके त्यागपूर्ण और वीरोचित संघर्ष का आँखों देखा और सजीव चित्र उपस्थित कर दिया उन्होंने अपना भाषण इस भविष्यवाणी के साथ समाप्त कर दिया , "उनका नाम युगों -युगों तक अमर रहेगा और इसी तरह उनकी कीर्ति भी अमर रहेगी " यह भी पढे :
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