ऐतिहासिक भौतिकवाद क्या है और उसकी आलोचना(What is Historical Materialism and its criticism)
ऐतिहासिक भौतिकवाद क्या है और उसकी आलोचना
मार्क्सवादी दर्शन में द्वंद्वात्मक भौतिकवाद के सिद्धांतों के अनुसार किए गए सामाजिक इतिहास की समीक्षा को ऐतिहासिक भौतिकवाद कहते हैं मार्क्स के अनुसार ऐतिहासिक भौतिकवाद एक दार्शनिक विज्ञान है जिसका संबंध जीवन के सार्वभौमिक नियमों से भिन्न सामाजिक विकास के विशिष्ट नियमों से है ऐतिहासिक भौतिकवाद एक ऐसा दार्शनिक विज्ञान है जो सामाजिक विकास के सामान्य नियमों पहलुओं एवं प्रवृत्तियों के अध्ययन पर अपना ध्यान केंद्रित करता है ऐतिहासिक भौतिकवाद की व्याख्या मार्क्स एवं एंजेल्स द्वारा संयुक्त रूप से लिखी गई महत्वपूर्ण पुस्तक "The German Ideology 1845-46" में प्रस्तुत की है कार्ल मार्क्स ने यह सिद्धांत पूंजीवाद समाज के उद्विकास के संबंध में प्रतिपादित किया यह उद्विकास सामाजिक परिवर्तन के सिद्धांत के सिद्धांत के अंतर्गत आता है जैसा की नाम से ही प्रतीत होता है इतिहास भौतिकवाद अर्थात बीते हुए समाजों की भौतिकवाद के आधार पर व्याख्या करना ही ऐतिहासिक भौतिकवाद है यह पहले भौतिकवाद की व्याख्या करते हैं इनके अनुसार प्रत्येक समाज की दो संरचनाएं होती हैं
- अधोसंरचना (Infrastructure or Sub-structure)
- अधिसंरचना (Superstructure)
आर्थिक व्यवस्था के अंतर्गत उत्पादन की प्रणाली आती है उत्पादन की प्रणाली के अंतर्गत उत्पादन के साधन और उत्पादन के संबंध पाया जाता है मार्क्स के अनुसार जब उत्पादन के साधन में परिवर्तन आता है तो लोगों के आपसी संबंध अर्थात उत्पादन के संबंध में परिवर्तन आ जाता है तो संपूर्ण उत्पादन प्रणाली में परिवर्तन आ जाता है और जब संपूर्ण उत्पादन प्रणाली में परिवर्तन आ जाता है तो संपूर्ण आर्थिक व्यवस्था में परिवर्तन आता है और जब आर्थिक व्यवस्था में परिवर्तन आता है तो संपूर्ण समाज में परिवर्तन आ जाता है क्योंकि आर्थिक व्यवस्था ही समाज में परिवर्तन का एकमात्र कारण है यही मार्क्स का आर्थिक निर्धारण वाद या भौतिकवाद है मार्क्स के अनुसार इतिहास में चार प्रकार के समाज पाए जाते हैं :
- आदिम समाज
- प्राचीन समाज
- सामंतवादी समाज
- पूंजीवादी समाज
- समाजवादी युग
आदिम समाज :- आदिम समाज में मानव झुंड बनाकर रहते थे इसमें कोई वर्ग नहीं पाया जाता था सभी के मध्य भाईचारे का संबंध पाया जाता था सभी के कार्य योग्यता और क्षमता के अनुसार बांटे थे और उस कार्य के फल स्वरुप जो कुछ प्राप्त होता था वह सभी में आवश्यकतानुसार वितरित कर दिया जाता था इसीलिए इसे आदिम साम्यवादी समाज कहा जाता है जब तक उत्पादन के कोई साधन नहीं थे तब तक यह आदिम समाज आदिम साम्यवादी समाज के रूप में विद्यमान था किंतु जैसे ही उत्पादन के साधन के रूप में पत्थर के औजार का निर्माण हुआ वैसे ही लोगों के संबंध में परिवर्तन हो गए अर्थात उत्पादन के संबंधों में परिवर्तन हो गया जहां काल तक भाईचारे के संबंध पाए जाते थे वही पत्थर के औजार रूपी उत्पादन के साधन के माध्यम से मालिक और दास के संबंध विद्यमान हो गए और जब उत्पादन के साधन और संबंध दोनों परिवर्तित हो गए तो संपूर्ण उत्पादन प्रणाली परिवर्तित हो गई जब संपूर्ण उत्पादन प्रणाली परिवर्तित हो गई तो संपूर्ण आर्थिक व्यवस्था परिवर्तित हो गई और तब संपूर्ण समाज परिवर्तित हो गया और आदिम समाज प्राचीन समाज के रूप में परिवर्तित हो गया
प्राचीन समाज :- प्राचीन समाज में पहले पत्थर के औजार उत्पादन का साधन थे मालिक और दास के संबंध पाए जाते थे परंतु जैसे ही भूमि उत्पादन के साधन के रूप में प्रयोग होने लगी वैसे ही लोगों के संबंध बदल गए यहां जमींदार और किसान दो वर्ग बन गए जब उत्पादन के साधन और संबंध दोनों बदल गए तो संपूर्ण उत्पादन प्रणाली परिवर्तित हो गई और उत्पादन प्रणाली परिवर्तित हुई तो संपूर्ण आर्थिक व्यवस्था परिवर्तित हो गई और फिर संपूर्ण समाज परिवर्तित हो गया तो प्राचीन समाज सामंतवादी समाज के रूप में परिवर्तित हो गया
सामंतवादी समाज :- सामंतवादी समाज में उत्पादन के साधन जब भूमि से परिवर्तित होकर बड़ी-बड़ी मशीनें और उद्योग बन गए तो लोगों के संबंध बदल गए और पूंजीपति और सर्वहारा दो वर्ग बन गए जब उत्पादन के साधन और संबंध दोनों बदल गए तो संपूर्ण उत्पादन प्रणाली बदल गई और जब उत्पादन प्रणाली परिवर्तित हो गई तो संपूर्ण आर्थिक व्यवस्था परिवर्तित हो गई तब संपूर्ण समाज परिवर्तित हो गया और सामंतवादी समाज पूंजीवाद समाज में परिवर्तित हो गया इस प्रकार पूंजीवाद समाज का विकास हुआ
पूंजीवादी समाज :- पूंजीवादी सामान्यता उस आर्थिक प्रणाली या तंत्र को कहते है जिसमे उत्पादन के साधन पर निजी स्वामित्व का अधिकार होता है पूंजीवादी तंत्र लाभ के लिए चलाया जाता है, जिसमे निवेश, वितरण, आय उत्पादन मूल्य, बाजार मूल्य इत्यादि का निर्धारण मुक्त बाजार में प्रतिस्पर्धा द्वारा निर्धारित होता है पूंजीवादी एक आर्थिक पद्यति है पूँजीवाद की कभी कोई निश्चित परिभाषा स्थिर नहीं हुई , देश, काल और नैतिक मूल्यों के अनुसार इसके भिन्न भिन्न रूप बनते रहे है पूँजीवाद स्व हित, तर्कपूर्ण प्रतियोगिता स्व नियंत्रित बाज़ार और निजी सम्पति में विश्वास रखता है
समाजवादी युग :- यह युग सर्व रूप में वर्ग विहीन, राज्य विहीन और शोषण रहित होगा जैसा कि पहले भी कहा गया है यह तभी संभव होगा जबकि पूंजीवादी व्यवस्था खूनी क्रांति के द्वारा श्रमिक वर्ग उखाड़ फेंकेगा का और शासकीय शक्ति पर अपना अधिकार जमा लेगा
समाजवादी युग :- यह युग सर्व रूप में वर्ग विहीन, राज्य विहीन और शोषण रहित होगा जैसा कि पहले भी कहा गया है यह तभी संभव होगा जबकि पूंजीवादी व्यवस्था खूनी क्रांति के द्वारा श्रमिक वर्ग उखाड़ फेंकेगा का और शासकीय शक्ति पर अपना अधिकार जमा लेगा
ऐतिहासिक भौतिकवाद की आलोचना
- मार्क्स द्वारा प्रस्तुत इतिहास के विकास का काल विभाजन (मार्क्स ने इतिहास को पांच भागों में बांटा है) जो स्वीकार करने योग्य नहीं है
- मैक्स वेबर ने सामाजिक परिवर्तन का एकमात्र कारक आर्थिक व्यवस्था को मानने से इंकार कर दिया आपने एक महत्वपूर्ण कारक आर्थिक व्यवस्था को तो माना लेकिन अन्य कारक जैसे धर्म को भी सामाजिक परिवर्तन का कारक मानते हैं जो यूरोप में प्रोटेस्टेंट धर्म द्वारा हुआ था
- आर्थिक आधार पर सभी ऐतिहासिक घटनाओं का वर्णन संभव नहीं है जैसे बौद्ध व जैन धर्म का उदय अरब इजरायल का युद्ध आदि
- इतिहास का कालक्रम अनुपयुक्त है क्योंकि रूस एवं चीन में पूंजीवाद के बिना भी साम्यवाद का जन्म हुआ
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