समाजशास्त्र क्या है? समाजशास्त्र का अर्थ तथा परिभाषा (What is Sociology? Meaning and Definition of Sociology)
समाजशास्त्र क्या है समाजशास्त्र का अर्थ तथा परिभाषा What is Sociology? Meaning and Definition of Sociology
समाजशास्त्र क्या है? यह प्रश्न वर्तमान सामाजिक विचारको के लिए बहुत महत्वपूर्ण है हम सदियों से समाज में और विभिन्न समूहों में रहते चले आए हैं हमारे व्यवहार का प्रत्येक पक्ष किसी ना किसी सामाजिक नियम से प्रभावित होता रहा है तथा हजारों वर्षों पहले से लेकर आज तक धर्मशास्त्री, दार्शनिक और विचारक सामाजिक जीवन के विषय में अपने कुछ ना कुछ विचार भी प्रस्तुत करते रहे हैं लेकिन समाज को वैज्ञानिक दृष्टिकोण से समझने का प्रयास सर्वप्रथम 19वीं शताब्दी में अगस्त काम्टे ने किया (अगस्त काम्टे समाजशास्त्र के जनक है) इस दृष्टिकोण से दूसरे सामाजिक विज्ञानों की तुलना में समाजशास्त्र एक नया विज्ञान है एक नया विज्ञान होने के कारण समाजशास्त्र की प्रकृति तथा विषय वस्तु के संबंध में भी अनेक भ्रम उत्पन्न हो गए हैं कुछ व्यक्ति यह समझते हैं कि समाजशास्त्र सभी दूसरे सामाजिक विज्ञानों का मिश्रण है कुछ का विचार है कि मानव जीवन के छोटे से छोटे प्रत्येक पक्ष का अध्ययन करना समाजशास्त्र का कार्य है जबकि कुछ व्यक्ति यहां तक समझ लेते हैं की समाजशास्त्र केवल विवाह तथा परिवार का अध्ययन होने के कारण एक मनोरंजक विषय है इस कारण कोई भी व्यक्ति जो सामाजिक जीवन के किसी भी पक्ष पर कुछ बातें कर लेता है स्वयं को एक समाजशास्त्री कहने का भी दावा करने लगता है
शाब्दिक रूप से 'Sociology' शब्द दो विभिन्न स्थानों के शब्दों से मिलकर बना है पहला शब्द 'Socius' है जिसकी उत्पत्ति लैटिन भाषा से हुई है तथा दूसरा शब्द 'Logus' है जो ग्रीक भाषा से लिया गया है यह शब्दों का अर्थ क्रमशः समाज तथा शास्त्र है इस प्रकार 'Sociology' का अर्थ समाज के विज्ञान से है 'Sociology' शब्द का निर्माण दो विभिन्न स्थानों के शब्दों से होने के कारण जे. एस. मिल. ने इस नाम को अवैध कहा तथा इसकी जगह दूसरे नाम 'Ethology' का प्रस्ताव रखा जिसके अंदर मानव समूहों के पारस्परिक संबंधों का अध्ययन किया जा सके लेकिन मिलने के इस प्रस्ताव की कटु आलोचना की गई हरबर्ट स्पेंसर ने 'Sociology' शब्द को ही अधिक उपयुक्त मानते हुए या निष्कर्ष दिया," प्रतीकों की सुविधा और सूचक ता उनकी उत्पत्ति संबंधी वैधता से कहीं अधिक महत्वपूर्ण होती है इसके बाद से सामाजिक संबंधों का व्यवस्थित अध्ययन करने वाले विज्ञान को समाजशास्त्र के नाम से ही संबोधित किया जाने लगा
लेपियर का कथन है ,"समाज मनुष्यों के एक समूह का नाम नहीं है बल्कि मनुष्य के बीच होने वाली अंतर क्रियाओ और इनके प्रति मानव को ही हम समाज कहते हैं" क्यूबर के अनुसार,"विज्ञान अवलोकन और पुनः अवलोकन के द्वारा विश्व में पाई जाने वाली समानता की खोज करने वाली एक पद्धति है यह एक ऐसी पद्धति है जिसके परिणाम सिद्धांतों के रूप में प्रस्तुत किए जाते हैं तथा ज्ञान के क्षेत्र में व्यवस्थित रखे जाते हैं
समाजशास्त्र की परिभाषाएं
सभी समाजशास्त्री यह स्वीकार करते हैं कि समाजशास्त्र समाज का अध्ययन है लेकिन फिर भी विभिन्न समाज शास्त्रियों ने समाज को भिन्न-भिन्न आधारों पर परिभाषित किया है अध्ययन की सरलता के लिए समाजशास्त्र की सभी परिभाषा ओं को चार प्रमुख भागों में विभाजित करके स्पष्ट किया जा सकता है:
- समाजशास्त्र समाज का अध्ययन :- इस वर्ग में भी समाजशास्त्री आते हैं जिनके अनुसार समाजशास्त्र संपूर्ण समाज का व्यवस्थित और क्रमबद्ध अध्ययन है उन्होंने समाजशास्त्र को ज्ञान की एक ऐसी शाखा के रूप में स्पष्ट करने का प्रयास किया है जो संपूर्ण समाज का एक समग्र इकाई के रूप में अध्ययन करती है दुर्खीम, गिड्डिंग्स, समनर, वार्ड आदि समाजशास्त्री इसी वर्ग में आते हैं
- समाजशास्त्र सामाजिक संबंधों का अध्ययन :- इस वर्ग के समाजशास्त्रीयो की संख्या सबसे अधिक है इनके अनुसार समाज व्यक्तियों का एकत्रीकरण नहीं है बल्कि या सामाजिक संबंधों की व्यवस्था है इसलिए समाजशास्त्र को एक ऐसे विज्ञान के रूप में स्पष्ट करना उचित है जो सामाजिक संबंधों का व्यवस्थित रूप में अध्ययन कर सकें वास्तव में समाजशास्त्र को समाज अथवा सामाजिक संबंधों का अध्ययन कहना विभिन्न विशेषताओं की ओर संकेत नहीं करता इस दृष्टिकोण से पहले तथा दूसरे वर्ग की परिभाषाओ में कोई आधारभूत अंतर नहीं है
- समाजशास्त्र सामाजिक अंतर क्रियाओं का अध्ययन :- गिन्सबर्ग, सीमेल, हॉबहाउस तथा ग्रीन आदि समाजशास्त्रियों का विचार है कि समाज के निर्माण में सामाजिक संबंधों की अपेक्षा सामाजिक अंतर क्रियाएं अधिक महत्वपूर्ण है सामाजिक संबंध तो संख्या में इतने अधिक है की उनका व्यवस्थित अध्ययन करना भी कठिन है ऐसी स्थिति में यदि हम समाजशास्त्र को केवल सामाजिक अंतर क्रियाओं का अध्ययन कहकर परिभाषित करें तो इसकी प्रकृति को अधिक स्पष्ट रूप से समझा जा सकता है
- समाजशास्त्र समूहो का अध्ययन :- हेनरी जॉनसन जैसे प्रख्यात समाजशास्त्री ने आरंभ में ही यह स्पष्ट किया कि समाजशास्त्र सामाजिक समूह का अध्ययन है आपके अनुसार समाज की धारणा बहुत विवाद पूर्ण है इसलिए समाजशास्त्र को सामाजिक समूहों के वैज्ञानिक अध्ययन के रूप में ही परिभाषित किया जाना चाहिए इस दृष्टिकोण से समाजशास्त्र को समूहों के ढांचे संगठन इन्हें बनाने वाली और इन में परिवर्तन लाने वाली प्रक्रियाओं तथा समूहों के पारस्परिक संबंधों का अध्ययन कहकर परिभाषित किया जा सके
उपरोक्त विचारधाराओं से बड़ी भ्रमपूर्ण स्थिति पैदा हो जाती है हमारे सामने महत्वपूर्ण प्रश्न यह उत्पन्न होता है कि फिर हम समाजशास्त्र को किस दृष्टिकोण से परिभाषित करें वास्तविकता यह है कि अलग-अलग समाज शास्त्रियों के विचारों की भिन्नता केवल इस समस्या से संबंधित है की समाज को किस दृष्टिकोण से देखा जाए कुछ व्यक्ति समाज का तात्पर्य सामाजिक संबंधों की व्यवस्था से समझते हैं कुछ के अनुसार समाज का निर्माण सामाजिक अंतर क्रियाओं से होता है जबकि कुछ विद्वान सामाजिक समूह तथा समाज के बीच कोई भी अंतर नहीं मानते इसके पश्चात में भी अधिकांश समाजशास्त्री यही स्वीकार करते हैं कि समाज का निर्माण सामाजिक संबंधों से होता है इस प्रकार समाजशास्त्र एक ऐसा विज्ञान है जो सामाजिक संबंधों का व्यवस्थित रूप से अध्ययन करता है इसी आधार पर वार्ड का कथन है, "समाजशास्त्र समाज का वैज्ञानिक अध्ययन है" इस प्रकार प्रस्तुत विवेचन में हम सर्वप्रथम सामाजिक संबंधों की व्यवस्था के आधार पर समाजशास्त्र को परिभाषित करेंगे
मैकाइवर तथा पेज का कथन है, "समाजशास्त्र सामाजिक संबंधों के विषय में है संबंधों की इसी जाल को हम समाज कहते हैं" गिड्डिंग्स का विचार है कि, "समाजशास्त्र समग्र रूप में समाज का व्यवस्थित वर्णन और व्याख्या है"
दुर्खीम के अनुसार, "समाजशास्त्र सामूहिक प्रतिनिधानो का विज्ञान है"
यह भी पढ़े :
Comments
Post a Comment
Please do not enter any spam link in the comment box.