समाजशास्त्र की उत्पत्ति कब और कैसे हुई ? (When and how did sociology originate?)
समाजशास्त्र की उत्पत्ति कब और कैसे हुई ? (When
and how did sociology originate?)
मॉरिस गिन्सबर्ग ने लिखा है, "मोटे तौर पर कहा जा सकता है कि समाजशास्त्र की उत्पत्ति राजनीतिक, दर्शन, इतिहास, विकास के प्राणीशास्त्री सिद्धांतों तथा सुधार के लिए होने वाले उन सभी सामाजिक और राजनीतिक आंदोलनों पर आधारित है जिन्होंने सामाजिक दशाओं का सर्वेक्षण करना आवश्यक समझा वास्तविकता यह है कि समाजशास्त्र का व्यवहारिक रूप उतना ही प्राचीन है जितना कि स्वयं समाज का इसके बाद भी आज हम जिस दृष्टिकोण के आधार पर समाजशास्त्र को समझने और विकसित करने का प्रयत्न करते हैं उसकी उत्पत्ति का इतिहास अधिक प्राचीन नहीं है अन्य सामाजिक विज्ञानों जैसे अर्थशास्त्र, राजनीतिशास्त्र, मनोविज्ञान, सामाजिक मानवशास्त्र, दर्शनशास्त्र तथा इतिहास की तुलना में समाजशास्त्र सबसे बाद में विकसित होने वाला विज्ञान है संसार के विभिन्न समाज एक लंबे समय तक बहुत से धार्मिक विश्वासों तथा सामंतवादी राजनीतिक व्यवस्थाओं से प्रभावित रहने के कारण अब परिवर्तनशील बने रहे परंपरागत व्यवस्थाओ और विश्वासों के कारण सामाजिक संरचना तथा सामाजिक संबंधों के अध्ययन के लिए किसी ने सामाजिक विज्ञान की आवश्यकता भी महसूस नहीं की गई
एक लंबे अंतराल के बाद 15 वी शताब्दी से कुछ ऐसी घटनाएं घटित होना आरंभ हुई जिनके प्रभाव से पश्चिम के समाजों की राजनीतिक, आर्थिक और सामाजिक दशाओं में तेजी से परिवर्तन होने लगा इन घटनाओं में तीन घटने सबसे अधिक महत्वपूर्ण है जिन्हें हम पुनर्जागरण, फ्रांस की क्रांति तथा इंग्लैंड की औद्योगिक क्रांति के नाम से जानते हैं
- पुनर्जागरण का अर्थ है फिर से जागना व्यावहारिक रूप से जब कोई समाज अपने अधिकारों के लिए जागरूक बनने लगता है तब इसे हम पुनर्जागरण की दशा कहते हैं यूरोप में पुनर्जागरण 15 वी शताब्दी में इटली में आरंभ हुआ यूरोप में जब राजनीतिक अस्थिरता और जनसाधारण के शोषण में बहुत वृद्धि होने लगी तो यूरोप के बहुत से विद्वान इटली में जाकर रहने लगे यूनानी लैटिन और फ्रेंच साहित्य का एक बड़ा हिस्सा भी इटली में पहुंच गया फलस्वरूप इटली में धर्म, दर्शन, सामाजिक संरचना तथा व्यक्ति के अधिकारों पर के दृष्टिकोण से विचार किया जाने लगा नए चिंतन के प्रभाव से जर्मनी के अनेक लेखकों ने पोप और पादरियों द्वारा किए जाने वाले धार्मिक शोषण के विरुद्ध आवाज उठाना शुरू कर दी मार्टिन लूथर द्वारा लिखी गई पुस्तक न्यू टेस्टामेंट से लोगों को ईशा के वास्तविक देशों उपदेशों को समझने का अवसर मिला जिस से धीरे-धीरे पूरे यूरोप में परंपरागत विश्वासों की जगह तार्किक और मानवतावादी विचारों को प्रोत्साहन मिलने लगा पुनर्जागरण के कारण में राजा की निरंकुश अधिकारों का विरोध बढ़ने के साथ ही व्यक्तिक स्वतंत्रता की मांग भी जोर पकड़ने लगी इसके प्रभाव से उन परंपरागत सामाजिक और धार्मिक व्यवस्थाओं मैं विरोध बढ़ने लगा जो व्यक्ति स्वतंत्रता में बाधक थी इस समय थॉमस हॉब्स, जॉन लॉक, हुमे तथा कांट जैसे विद्वानों सामाजिक संबंधों तथा सामाजिक घटनाओं से संबंधित नियमों की विवेचना भी प्राकृतिक नियमों के समान करना आरंभ कर दी इस प्रकार पुनर्जागरण के काल से समाज को एक नए दृष्टिकोण से समझने का आधार तैयार होने लगा
- फ्रांस की क्रांति वह दूसरी प्रमुख घटना थी जिसके फलस्वरूप फ्रांस के साथ जर्मनी, इंग्लैंड, स्पेन, डेनमार्क और स्वीडन मैं लोगों को अपने समाज राजनीति तथा धर्म पर वैज्ञानिक दृष्टि से विचार करना शुरू कर दिया सन 1789 की फ्रांस की क्रांति से पहले फ्रांस का शासन पूरी तरह सम्राट बड़े-बड़े सामंतों और अधिकार संपन्न लोगों पर निर्भर था समाज के मध्यम और निम्न वर्ग को किसी तरह के अधिकार नहीं थे उच्च वर्गों द्वारा मजदूरों से बेगार लेना एक मामूली बात थी सामाजिक असमानताऐं बहुत अधिक थी भ्रष्टाचार के कारण सामाजिक व्यवस्था पूरी तरह खोखली हो चुकी थी चर्च और सम्राट के अधिकारियों के वैभव और व्यवहारों के विरुद्ध कोई भी व्यक्ति कुछ कहने का साहस नहीं कर सकता था पुनर्जागरण के प्रभाव से फ्रांस की सामान्य जनता मैं जब चेतना पैदा हुई तो उसने देश की तत्कालीन राजनीतिक, धार्मिक और सामाजिक व्यवस्था का विरोध करना शुरू कर दिया पहले इस आवाज को दबाया गया लेकिन नेपोलियन ने अपने शासन का काल मैं 17 जून 1789 को देश की नीतियों के निर्माण में जनसाधारण के अधिकारों को स्वीकार कर लिया तथा वहां निरंकुश राजतंत्र की समाप्ति हो गई इस समय से फ्रांस में एक ऐसी व्यवस्था विकसित होना आरंभ हुई जिसमें व्यक्तिगत स्वतंत्रता सामाजिक समानता जनता की प्रभुता और राष्ट्रवादी विचारों को अधिक महत्व दिया जाने लगा सभी महत्वपूर्ण पदों पर योग्य लोगों की नियुक्ति होने से फ्रांस में एक नई बौद्धिक क्रांति होना आरंभ हो गई स्वाभाविक है कि जब एक समाज परंपरागत व्यवस्थाओं से बाहर निकल कर एक नया स्वरूप ग्रहण करता है तब उसकी विकास के लिए नए दृष्टिकोण को विकसित करना भी आवश्यक हो जाता है यहीं से यूरोप के अनेक देशों में विद्वानों का ध्यान समाज और सामाजिक जीवन के विभिन्न पक्षों की व्याख्या की ओर जाना शुरू हो गया
- इंग्लैंड की औद्योगिक क्रांति का समय सन 1770 से लेकर 1830 के बीच का माना गया है यह वह समय था जब इंग्लैंड में नई प्रौद्योगिकी का तेजी से विकास होने के कारण औद्योगिक उत्पादन और आवागमन के साधनों का तेजी से विकास हुआ औद्योगिक विकास के फलस्वरुप एक ऒर इंग्लैंड में कुटीर उद्योगों का पतन हो जाने से बेरोजगारी में बहुत वृद्धि होने लगी तो दूसरी ओर कारखानों में श्रमिकों को समुचित सुविधाएं ना मिलने के कारण उनका असंतोष बढ़ता जा रहा था देश में यद्यपि लोकतांत्रिक सरकार स्थापित थी लेकिन पार्लियामेंट कि सदस्यों के चुनाव में मजदूरों और सामान्य व्यक्तियों को वोट देने का कोई अधिकार नहीं था औद्योगिक क्रांति से जैसे-जैसे सामान्य जनता की कठिनाइयां बढ़ने लगी एक ऐसी सामाजिक आर्थिक व्यवस्था की मांग की जाने लगी जिसके अंतर्गत एक समताकारी व्यवस्था को प्रोत्साहन मिल सके
समाजशास्त्र की उत्पत्ति और विकास में 19वीं शताब्दी का स्थान सबसे अधिक महत्वपूर्ण है वास्तविकता यह है कि फ्रांस की क्रांति और इंग्लैंड की औद्योगिक क्रांति से होने वाली राजनीतिक तथा आर्थिक क्षेत्र से यूरोप का आर्थिक ढांचा इतनी तेजी से बदलने लगा कि उस समय के अधिकांश विद्वान एक नए सामाजिक विज्ञान के द्वारा इस बदलती हुई सामाजिक संरचना का अध्ययन करना आवश्यक मानने लगे सेंट साइमन वह पहले विद्वान थे जिन्होंने सन 1824 मैं यह विचार रखा की राजशाही और सामंतवादी समाज की तुलना में आज समाज का ढांचा इतना बदल चुका है कि इसका व्यवस्थित अध्ययन करने के लिए एक नए सामाजिक विज्ञान को विकसित करना जरूरी है समाज में एक ने मध्यम वर्ग का उदय होने और उसकी ताकत में तेजी से होने वाली वृद्धि के कारण भी परंपरागत समाजों का रूप तेजी से बदलने लगा जो समाज कुछ समय पहले तक सामंतों जागीरदारों और धार्मिक प्रतिनिधियों द्वारा लागू व्यवस्था पर आधारित थे उनकी शक्ति मध्यमवर्ग के हाथों में आ जाने के कारण भी सामाजिक संरचना में व्यापक परिवर्तन होने लगे इन देशों के बीच जेम्स मिल जैसे इंग्लैंड के प्रमुख अर्थशास्त्री ने भी यह महसूस करना आरंभ कर दिया कि बदलती हुई दशाओं में एक ऐसे विज्ञान को विकसित करना आवश्यक है जिसके द्वारा विभिन्न सामाजिक दिशाओं का पक्षपात रहित अध्ययन किया जा सके यह पहला अवसर था जब आर्थिक राजनीतिक मनोवैज्ञानिक तथा ऐतिहासिक अध्ययन ओके अतिरिक्त सामाजिक व्यवस्था और सामाजिक संरचना के अध्ययन के प्रति विद्वानों का ध्यान आकर्षित होना आरंभ हो गया
अगस्त कॉमटे 19वीं शताब्दी के महान विचारक थे उन्होंने जब सेंट साइमन और जेम्स मिल के विचारों का गंभीरता से अध्ययन किया तो उन्होंने एक ऐसे सामाजिक विज्ञान की रूपरेखा बनाना आरंभ कर दिया जिसके द्वारा सामाजिक जीवन को वैज्ञानिक आधार पर समझकर उसे अधिक प्रगतिशील बनाया जा सके उन्होंने यह महसूस किया कि जिस तरह प्राकृतिक घटनाएं कुछ निश्चित नियमों से प्रभावित होती हैं उसी तरह हमारा सामाजिक जीवन भी अनेक नियमों के द्वारा संचालित होता है इन नियमों को समझकर ही सामाजिक जीवन को अधिक व्यवस्थित बनाया जा सकता है इसी आधार पर कॉमटे ने समाज का वैज्ञानिक अध्ययन करने के लिए जिस नहीं सामाजिक विज्ञान के नीव रखी उसे उन्होंने आरंभ में सामाजिक भौतिकी का नाम दिया जिसका बाद में उन्होंने नाम बदलकर समाजशास्त्र रख दिया एक विज्ञान के रूप में समाजशास्त्र की स्थापना सन 1838 में कॉम्टे द्वारा की गई इसी कारण कॉमटे को समाजशास्त्र का जनक कहा जाता है (Father of Sociology)
- इंग्लैंड में सबसे पहले हरबर्ट स्पेंसर ने "Socoiology" समाजशास्त्र के नाम से पहले पुस्तक प्रकाशित की
- समाजशास्त्र को एक वैज्ञानिक और व्यवस्थित रूप देने का काम सबसे पहले फ्रांस के विचारक इमाइल दुर्खीम ने किया उन्होंने समाजशास्त्री पद्धति के नियम नाम से एक पुस्तक लिखकर यह स्पष्ट किया कि सामाजिक घटनाओं का व्यवस्थित अध्ययन किस प्रकार किया जा सकता है उन्होंने धर्म समाज में श्रम विभाजन तथा आत्महत्या जैसे महत्वपूर्ण सामाजिक विषयों के बारे में प्राथमिक सूचनाएं एकत्रित करके यह बताया कि वास्तविक सामाजिक घटनाओं का अध्ययन करके ही समाजशास्त्र को वैज्ञानिक रूप दिया जा सकता है
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